सु + हृष् + सन् + णिच् धातुरूपाणि - लुट् लकारः

हृषँ तुष्टौ - दिवादिः

 
 

कर्तरि प्रयोगः परस्मै पदम्

 
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथम पुरुषः
मध्यम पुरुषः
उत्तम पुरुषः
 

कर्तरि प्रयोगः आत्मने पदम्

 
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथम पुरुषः
मध्यम पुरुषः
उत्तम पुरुषः
 

कर्मणि प्रयोगः आत्मने पदम्

 
एकवचनम्
द्विवचनम्
बहुवचनम्
प्रथम पुरुषः
मध्यम पुरुषः
उत्तम पुरुषः
 

कर्तरि प्रयोगः परस्मै पदम्

 
एक
द्वि
बहु
प्रथम
सुजिहर्षिषयिता
सुजिहर्षिषयितारौ
सुजिहर्षिषयितारः
मध्यम
सुजिहर्षिषयितासि
सुजिहर्षिषयितास्थः
सुजिहर्षिषयितास्थ
उत्तम
सुजिहर्षिषयितास्मि
सुजिहर्षिषयितास्वः
सुजिहर्षिषयितास्मः
 

कर्तरि प्रयोगः आत्मने पदम्

 
एक
द्वि
बहु
प्रथम
सुजिहर्षिषयिता
सुजिहर्षिषयितारौ
सुजिहर्षिषयितारः
मध्यम
सुजिहर्षिषयितासे
सुजिहर्षिषयितासाथे
सुजिहर्षिषयिताध्वे
उत्तम
सुजिहर्षिषयिताहे
सुजिहर्षिषयितास्वहे
सुजिहर्षिषयितास्महे
 

कर्मणि प्रयोगः आत्मने पदम्

 
एक
द्वि
बहु
प्रथम
सुजिहर्षिषिता / सुजिहर्षिषयिता
सुजिहर्षिषितारौ / सुजिहर्षिषयितारौ
सुजिहर्षिषितारः / सुजिहर्षिषयितारः
मध्यम
सुजिहर्षिषितासे / सुजिहर्षिषयितासे
सुजिहर्षिषितासाथे / सुजिहर्षिषयितासाथे
सुजिहर्षिषिताध्वे / सुजिहर्षिषयिताध्वे
उत्तम
सुजिहर्षिषिताहे / सुजिहर्षिषयिताहे
सुजिहर्षिषितास्वहे / सुजिहर्षिषयितास्वहे
सुजिहर्षिषितास्महे / सुजिहर्षिषयितास्महे
 


सनादि प्रत्ययाः

उपसर्गाः