कृदन्तरूपाणि - सु + हिन्व् + सन् + णिच् - हिविँ प्रीणनार्थः - भ्वादिः - सेट्


 
कृत् प्रत्ययाः
कृदन्तरूपाणि
ल्युट्
सुजिहिन्विषणम्
अनीयर्
सुजिहिन्विषणीयः - सुजिहिन्विषणीया
ण्वुल्
सुजिहिन्विषकः - सुजिहिन्विषिका
तुमुँन्
सुजिहिन्विषयितुम्
तव्य
सुजिहिन्विषयितव्यः - सुजिहिन्विषयितव्या
तृच्
सुजिहिन्विषयिता - सुजिहिन्विषयित्री
ल्यप्
सुजिहिन्विषय्य
क्तवतुँ
सुजिहिन्विषितवान् - सुजिहिन्विषितवती
क्त
सुजिहिन्विषितः - सुजिहिन्विषिता
शतृँ
सुजिहिन्विषयन् - सुजिहिन्विषयन्ती
शानच्
सुजिहिन्विषयमाणः - सुजिहिन्विषयमाणा
यत्
सुजिहिन्विष्यः - सुजिहिन्विष्या
अच्
सुजिहिन्विषः - सुजिहिन्विषा
सुजिहिन्विषा


सनादि प्रत्ययाः

उपसर्गाः